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भारतीय संविधान में अधिकार

भारतीय संविधान में अधिकार

अधिकार 

  • अधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियों है जिनके बिना कोई भी मनुष्य अपना विकास नही कर सकता । अधिकार वे हक है जो एक आम आदमी को जीवन जीने के लिए चाहिए , जिसकी वो मांग करता है । कानून द्वारा प्रदत्त सुविधाएं अधिकारो की रक्षा करती है ।
अधिकारों का घोषणा पत्र
अधिकतर लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों के अधिकारों को संविधान में सूचीबद्ध कर दिया जाता हैं ऐसी सूची को अधिकारों का घोषणा पत्र  कहते है । जिसकीमांग 1928 में नेहरू जी ने उठाई थी ।
हमें मौलिक अधिकारो की आवश्यकता क्यों है 
मौलिक अधिकार व्यक्ति के मूल विकास , सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक हैं । समाज में समानता , स्वतंत्रता , बन्धुत्व , आर्थिक , सामाजिक विकास लाने में सहयोग प्रदान करते हैं ।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 
2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार का गठन हुआ । इसमे सदस्य  एक भूतपूर्व सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश , एक भूतपूर्व उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश तथा मानवधिकारों के संबंध में ज्ञान रखने या व्यवहारिक अनुभव रखने वाले दो सदस्य होते हैं । कार्य  शिकायते सुनना , जांच करना तथा पीड़ित को राहत पहुंचाना
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार
भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान क्रांतिकारियों / स्वतंत्रता नायको द्वारा नागरिक अधिकारों की मांग समय  समय पर उठाई जाती रही । 1928 में भी मोतीलाल नेहरू समिति ने अधिकारों के एक घोषणा पत्र की मांग उठाई थी । फिर स्वतंत्रता के बाद इन अधिकारों में से अधिकांश को संविधान में सूचीबद्ध कर दिया गया । 
सामान्य अधिकार
वे अधिकार जो साधारण कानूनों की सहायता से लागू किए जाते हैं तथा इन अधिकारों में ससंद कानून बना कर के परिवर्तन कर सकती है ।
मौलिक अधिकार
वे अधिकार जो संविधान में सूचीबद्ध किए गए हैं तथा जिनको लागू करने के लिए विशेष प्रावधान किए गये है । इनकी गांरटी एवं सुरक्षा स्वंय संविधान करता है । इन अधिकारों में परिवर्तन करने के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ता है । सरकार का कोई भी अंग मौलिक अधिकारों के विरूद्ध कोई कार्य नहीं कर सकता ।
नोट :- मौलिक अधिकारो की प्ररेणा भारत ने अमेरिका के संविधान से ली है । संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 5 तक मौलिक अधिकारो विवरण/उल्लेख है ।
मौलिक अधिकार के प्रकार :
नोट :- मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकारो का उल्लेख है परंतु 44वें संविधान संसोधन 1978 के तहत संपत्ति के मौलिक अधिकार को समाप्त कर दिया गया है और उसे सामान्य कानून के अधिकार के रूप में अनुच्छेद 300(1) में स्थापित कर दिया गया है ।
भारतीय संविधान के भाग तीन में वर्णित छ : मौलिक अधिकार निम्न प्रकार है 
1 ) समानता का अधिकार ( 14 , 18 अनुच्छेद )

2 ) स्वतंत्रता का अधिकार ( 19 , 22 अनुच्छेद )

3 ) शोषण के विरूद्ध अधिकार ( 23 , 24 अनुच्छेद )

4 ) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ( 25 , 28 अनुच्छेद 

5 ) संस्कृति एवं शिक्षा संबधि ( 29 ,30 अनुच्छेद )

6 ) संवैधानिक उपचारों का अधिकर ( अनुच्छेद 32 ) 
समता का अधिकार :-


🔶 अनुच्छेद 14 :- गांरटी कानूनी समता और समान कानूनी सुरक्षा प्राप्त करने के बिना भेदभाव के ।

🔶 अनुच्छेद 15 :- सरकार  धर्म जाति , लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव मुक्त समाज की स्थापना ।

🔶  अनुच्छेद 16 :- सार्वजानिक नियुक्तियाँ में अवसर समानता।

🔶 अनुच्छेद 17 :- समाज से छुआछुत की समाप्ति ।

🔶 अनुच्छेद 18 :- सैनिक एवं शैक्षिक उपाधियों के अलावा उपाधियों पर रोक ।
स्वतंत्रता का अधिकार :-

🔶  अनुच्छेद 19 :- स्वतंत्रता  भाषण एवं अभिव्यक्ति , संघ बनाने , सभा करने भारत भर में भ्रमण करने , भारत के किसी भाग में बसने और स्वतंत्रता पूर्वक कोई भी व्यवसाय करने की ।

🔶 अनुच्छेद 20 :- अपराध में अभियुक्त या दंडित व्यक्ति को सरंक्षण प्रदान करना ।

🔶 अनुच्छेद 21 :- कानूनी प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति को जीने की स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता । अनुच्छेद 21 ( क ) RTE , 2002 , 86 वां संविधान संशोधन शिक्षा मौलिक अधिकर वर्ष 6 से 14 आयु मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा 

🔶 अनुच्छेद 22 :- किसी भी नागरिक की विशेष मामलों में गिरफ्तारी एवं हिरासत से सुरक्षा प्रदान करना ।
नोट  93वें संशोधन ( 2002 ) द्वारा शिक्षा के अधिकार को अनुच्छेद 211 ( ए ) में जोड़ा गया ।
शोषण के विरूद्ध अधिकार :-

🔶  अनुच्छेद 23 :- मानव व्यापार ( तस्करी ) और बल प्रयोग द्वारा बेगारी , बंधुआ मजदूरी पर प्रतिबंध जब भारत आजाद हुआ , तब भारत के कई भागों में दासता और बेगार प्रथा प्रचलित थी । जमींदार किसानों से काम करवाते थे , परन्तु मजदूरी नहीं देते थे , विशेषकर स्त्रियों को पशुओं की तरह खरीदा और बेचा जाता था ।

🔶 अनुच्छेद 24 :- खदानों , कारखानों और खतरनाक कामों में बच्चों की मनाही ।

🔶 अनुच्छेद 24 :- के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी जोखिम वाले काम पर नहीं लगाया जायेगा , जैसे  खदानों में कारखानों में इत्यादि ।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार :-

🔶  अनुच्छेद 25 :-अपने अपने धर्म को मानने , पालन करने एवं प्रचार प्रसार करने का अधिकार ।

🔶 अनुच्छेद 26 :- संगठित इकाई के रूप में धार्मिक तथा परोपकारी कार्य करने वाले संस्थानों को स्थापित करने का अधिकार।
🔶अनुच्छेद 27 :- धर्म प्रचार एवं धार्मिक सम्प्रदाय की देख  रेख । के लिए कर  देने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।

🔶 अनुच्छेद 28 :- किसी भी सरकारी शिक्षण संस्था मे कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी ।
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार :-

🔶 अनुच्छेद 29 :- भारत के किसी भी राज्य के नागरिकों को अपनी विशेष भाषा , लिपि या संस्कृति को बनाए रखने को अधिकार देता है ।

🔶 अनुच्छेद 30 :- इसके अन्तर्गत भाषा तथा धार्मिक अप्लसंख्यकों को शिक्षा संस्थाओं की स्थापना तथा उनके प्रशासन को चलाने का अधिकार प्रदान करता है ।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार :-

🔶 अनुच्छेद 32 :- संविधान के जनक , डॉ . अम्बेडकर ने इस अधिकार को संविधान का हृदय और आत्मा  की संज्ञा दी है । इसके अंतर्गत न्यायलय कई विशेष आदेश जारी करते है जिन्हें रिट कहते हैं ।

🔹 जो निम्न प्रकार हैं :-

1. बंदी प्रत्यक्षीकरण ( हबीस कार्पस )
2. परमादेश ( मण्डामस )
3. प्रतिषेध ( प्रोहिबीशन )
4. अधिकार पृच्छा ( क्वो वारंटो )
5. उत्प्रेषण ( सरशियोरी )
बंदी प्रत्यक्षीकरण ( हबीस कार्पस ):

🔹 न्यायालय द्वारा किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय / जज के सामने उपस्थित होने / करने का आदेश दिया जाना बंदी प्रत्यक्षीकरण कहलाता है ।
परमादेश ( मण्डामस )

🔹 इसके अतर्गत यदि कोई सार्वजनिक पदाधिकारी/मण्डामस अपने पद का निवहि नही करता है तो न्यायालय उसे कर्तव्य पालन की आज्ञा दे सकता है ।
प्रतिषेध ( प्रोहिबीशन )

🔹 इसके अतर्गत सर्वोच्च न्यायलय या उच्च न्यायालय के द्वारा निम्न या अधीनस्त न्यायलयों की किसी भी मामले में सुनवाई स्थागित करने के लिए कहा जा सकता है ।
अधिकार पृच्छा ( क्वो वारंटो ) :-

🔹अधिकार पृच्छा का अर्थ है कि “आपका अधिकार क्या है?” यह रिट तब जारी कि जाती है, जब कोई व्यक्ति किसी सार्वजानिक पद पर बिना किसी अधिकार के कार्य करता है, तो न्यायालय इस रिट के द्वारा उसके अधिकार के बारे में जानकारी प्राप्त करती है, उस व्यक्ति के उत्तर से संतुष्ट न होने पर न्यायालय उसके कार्य करने पर रोक लगा सकती है ।
उत्प्रेषण ( सरशियोरी ) :-

🔹 इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय, ट्रिब्यूनल या अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण द्वारा जारी किये गए आदेश को रद्द करने के लिए उत्प्रेषण रिट को जारी किया जाता है ।
दक्षिण अफ्रीका का संविधान :-

🔹 दक्षिण अफ्रीका का संविधान दिसम्बर 1996 में लागू हुआ , जब रंगभेद वाली सरकार हटने के बाद देश गृहयुद्ध के खतरे से जूझ रहा था , दक्षिण अफ्रीका में अधिकारों को घोषणा पत्र प्रजातंत्र की आधारशिला है ।

❇️ दक्षिण अफ्रीका के संविधान में सूचीबद्ध प्रमुख अधिकार :-
गरिमा का अधिकार ।
निजता का अधिकार ।
श्रम संबंधी समुचित व्यवहार का अधिकार ।
स्वास्थ्य पर्यावरण और पर्यावरण सरंक्षण का अधिकार ।
समुचित आवास का अधिकार ।
स्वास्थ्य सुविधाएं , भोजन , पानी और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार ।
बाल अधिकार ।
बुनियादी और उच्च शिक्षा का अधिकार ।
सूचना प्राप्त करने का अधिकार ।
सांस्कृतिक , धार्मिक ओर भाषाई समुदायों का अधिकार ।

 ❇️ राज्य के नीति निर्देशक तत्व क्या है ?


🔹 स्वतंत्र भारत में सभी नागरिकों में समानता लाने और सबका कल्याण करने के लिए मौलिक अधिकारों के अलावा बहुत से नियमों की जरूरत थी । राज्य की नीति निर्देशक तत्वों के तहत ऐसे ही नीतिगत निर्देश सरकारों को दिए गए है , जिनको न्यायलय में चुनौती नहीं दी जा सकती है परन्तु इन्हें लागू करने के लिए सरकार से आग्रह किया जा सकता है । सरकार का दायित्व है कि जिस सीमा तक इन्हें लागू कर सकती है , करें ।

🔹 प्रमुख नीति निर्देशक तत्वों की सूची में तीन प्रमुख बातें हैं


वे लक्ष्य और उद्देश्य जो एक समाज के रूप मे हमें स्वीकार करने चाहिए ।

वे अधिकार जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अलावा मिलने चाहिए ।

वे नीतियाँ जिन्हें सरकार को स्वीकार करना चाहिए ।


❇️ नागरिकों के मौलिक कर्तव्य :-
🔹 1976 में , 42वें संविधान संशोधन द्वारा नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों की सूची ( अनुच्छेद ( क ) ) का समावेश किया गया है ।

🔹 इसके अन्तर्गत नागरिकों के दस मौलिक कर्तव्य निम्न हैं :-
संविधान का पालन करना , राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना ।
राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखना और उनका पालन करना ।
भारत की सम्प्रभुता , एकता और अखंडता की रक्षा करना ।
राष्ट्र रक्षा एवं सेवा के लिए तत्पर रहना ।
नागरिकों मे भाईचारे का निर्माण करना ।
हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली पंरपरा के महत्व को समझे और उसको बनाए रखें ।
प्राकृतिक पर्यावरण का सरंक्षण करें ।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण , मानववाद ओर ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें ।
सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाएं और हिंसा से दूर रहें ।
व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करें ।
 ❇️ नीति निर्देशक तत्वों और मौलिक अधिकारों में संबंधः :-

🔹 दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । जहां मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबंध लगाते हैं , वहीं नीति निर्देशक तत्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं ।

🔹 मौलिक अधिकार खास तौर पर व्यक्ति के अधिकारों को सरंक्षित करते हैं , वहीं पर नीति निर्देशक तत्व पूरे समाज के हित की बात करते है ।
❇️ नीति  निर्देशक तत्वों एवं मौलिक अधिकारों में अन्तरः :-
🔹 मौलिक अधिकारों को कानूनी सहयोग प्राप्त है परन्तु नीति निर्देशक तत्वों को कानूनी सहयोग प्राप्त नहीं है । अर्थात् मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर आप न्यायलय में जा सकते हैं परन्तु नीति निर्देशक तत्वों के उल्लंघन पर न्यायलय नहीं जा सकते ।

🔹 मौलिक अधिकारों का सम्बन्ध व्यक्तियों और निर्देशक सिद्धान्तों का समबन्ध समाज से है ।

🔹 मौलिक अधिकार प्राप्त किये जा चुके हैं जबकि निर्देशक सिद्धान्तों को अभी लागू नहीं किया गया ।

🔹 मौलिक अधिकारों का उददेश्य देश मे राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना करना है निर्देशक सिद्धान्तों का उददेश्य सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है ।

🔹 मौलिक अधिकार व्यक्ति के कल्याण को बढावा देते हैं निर्देशक सिद्धान्त समुदाय के कल्याण को बढावा देते हैं ।
❇️ बंधुआ मजदूरी :-
🔹 जमींदारों , सूदखोरों और अन्य धनी लोगों द्वारा गरीबों से पीढ़ी दर पीढ़ी मजदूरी करवाना । अब इसे अपराध घोषित कर दिया गया ।